समावेशी शिक्षा वर्तमान समय की एक महती आवश्यकता

Mukesh Choudhary
व्याख्याता भॅवर कॅवर सुगन सिंह महाविद्यालय, इन्द्रपुरा (झुन्झुनूॅ) E-mail- rakeshkhakhil89@gmail.com, Mobile no.- 9636125260
भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। जहॉ प्रत्येक नागरिक को शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार है। इन अधिकारो के बाद भी सभी बालको को समान रुप से शिक्षा नही प्राप्त हो रही है। क्योंकि बालकों में जन्मजात विभिन्नताए पाई जाती है। इन्ही विभिन्नताओं के कारण उनके साथ पृथकता का व्यवहार किया जाता है। इन बालकों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने एवं शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य बालकों के साथ समाहित करने के लिए समावेशी शिक्षा ही एक श्रेष्ठ मार्ग है। यह शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने की एक मनोवृति है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक बालक को चाहे वो विशिष्ट हो या सामान्य बिना किसी भेदभाव के साथ एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ उनकी सीखने-सिखाने की जरुरतों को पूरा किया जाता है। जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किये जाने वाले भेदभाव को स्वीकार नही करता है, उसी प्रकार समावेशी शिक्षा भी किसी भी बालक के साथ शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के बाद भी उनको भिन्न रुप में देखने की बजाय एक स्वतन्त्र अधिगम कर्ता के रुप में देखती है। समावेषन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतन्त्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है, बल्कि यह सीखने एवं विश्वास करने के लिए भी सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। यह शिक्षा अधिगमकर्ताओं को गुणात्मक शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करते हुए उसकी आधारभूत शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उसके जीवन को समृद्ध बनाने में सहायता प्रदान करती है। यह सामान्य तथा विशिष्ट बालकों को साथ लेकर या उनको सम्मिलित करते हुए उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनके बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोगी संसाधनों को जुटाने का कार्य करती हैं। यह शिक्षा बालकों में सामाजिक तथा नैतिक गुणों का विकास करती है। यह शिक्षा सम्मान और अपनेपन की विद्यालयी संस्कृति के साथ-साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करने में सहायक होती है। समावेशी शिक्षा में अधिगम के ही नही बल्कि विशिष्ट अधिगम के नये आयाम प्रदान करने के साथ प्रत्येक बच्चे के लिए उच्च और उचित उम्मीदों के साथ व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करने में सहायक सिद्ध होती है। उमातुलि के अनुसार :-‘‘समावेशन एक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक विद्यालय को दैहिक, संवेगात्मक तथा सीखने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संसाधनों का विस्तार होता है।‘‘ समावेशी शिक्षा अधिगम के ही नही, बल्कि विशिष्ट अधिगम के नए आयाम खोलती है।

Highlights