लैंगिक समानता: मिथक या यथार्थ

Dr Jyoti Sidana
सह-प्रोफेसर समाजशास्त्र विभाग, राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा (राजस्थान) E-mail- drjyotisidana@gmail.com, Mobile no.- 7976207834
सारांश: प्रसिद्ध नारीवादी सिमोन द बुआ लिखती है कि पुरुष को मनुष्य के रूप में और स्त्री को स्त्री के रूप में परिभाषित किया जाता है। जब भी स्त्री मनुष्य की तरह व्यवहार करती है तो उस पर पुरुष की नकल करने का आरोप लगाया जाता है। एक समानतामूलक और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए बहुत जरुरी है कि स्त्री को भी मनुष्य के रूप में परिभाषित किया जाए। कहते हैं कि औरते बहुत भली होती हैं जब तक वे पुरुषों की हाँ में हाँ मिलाती हैं। औरते बहुत बुरी होती हैं जब वे सोचने, समझने और खड़ी होकर उनके विरुद्ध बोलने लगती हैं। आज की सदी ज्ञान की सदी है जहाँ ज्ञान को शक्ति माना जाता है। ऐसे में महिला को भी ज्ञान के क्षेत्र में इतना गहरा उतरना होगा कि वह न केवल हर तरह के भय का सामना कर सके अपितु इस सभ्य कहे जाने वाले समाज में एक शिष्ट जीवन भी जी सके। ज्ञान की इस शक्ति के द्वारा ही महिला न केवल अपने शोषण से मुक्ति पा सकती है अपितु शक्ति संबंधों में भी अपना स्थान सुनिश्चित कर सकती है शायद तभी बराबरी का समाज उभार ले सके।

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