भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था एवं ग्रामीण विकास के सन्दर्भ में पशुपालन का महत्व

Hari Prasad Yadav
शोधार्थी, समाजशास्त्र विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, Email-hariyadav1398@gmail.com, Mob.-9602492477
पशुपालन भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। पशुधन क्षेत्र भारत में 60ः से अधिक ग्रामीण आबादी को आजीविका सहायता प्रदान करने में एक बहुआयामी भूमिका निभाता है और भारत की पोषण सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि देश की इस जीवंत परिसंपत्ति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें आहार एवं चारे की कमी, बीमारी का प्रकोप, बदतर पशुधन विस्तार सेवाएँ, पशुधन उत्पादों के लिये असंगठित बाज़ार आदि शामिल हैं, जो पशुधन स्वास्थ्य और उत्पादकता को समग्र रूप से देखने हेतु गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता रखते हैं। पशुपालन ऐतिहासिक रूप से भारत में कृषि का एक अभिन्न अंग रहा है और वर्तमान में भी प्रासंगिक है क्योंकि ग्रामीण समाज का एक बड़ा वर्ग सक्रिय रूप से कृषि कार्य में संलग्न एवं इस पर निर्भर है। पशुपालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं; जैसे- मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन इत्यादि में किए गये अनुसंधान एवं उसके प्रचार-प्रसार का परिणाम है। अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन अत्यन्त कम है और इस दिशा में सुधार की बहुत संभावनायें है। विश्व में हमारा स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा, भेड़ों की संख्या में तीसरा एवं कुक्कुट संख्या में सातवाँ है। कम खर्चे में, कम स्थान एवं कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का अहम योगदान है। अगर इनसे सम्बंधित उपलब्ध नवीनतम तकनीकियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय तो निःसंदेह ये छोटे पशु गरीबों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस तरह पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने तथा उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की अपार सम्भावनायें हैं।

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