समान नागरिक संहिता : व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव

डॉ श्रधा व्यास
सहायक आचार्य, राजनीति विभाग, सेठ ज्ञानीराम बंशीधर पोदार कॉलेज, नवलगढ़ , झुंझुनू (राजस्थान) Email ID: sradhavyas02@gmail.com, Mob.-9460560108
कानून और न्याय मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि न्यायालय संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है और इसने देश में समान नागरिक संहिता (UCC) की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं (PIL) को खारिज करने की मांग की है। एक समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसे सामान्य कानून को संदर्भित करता है जो व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, विरासत, तलाक, गोद लेने आदि में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होता है। इसका उद्देश्य विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों को प्रतिस्थापित करना है जो वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के भीतर व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करते हैं। यूसीसी का मुख्य उद्देश्य विभिन्न धर्मों और समुदायों पर आधारित असमान कानूनी प्रणालियों को समाप्त करके सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। इस संहिता का लक्ष्य, न केवल समुदायों के बीच बल्कि एक समुदाय के भीतर भी कानूनों की एकरूपता को सुनिश्चित करना है। समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है। संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। अनुच्छेद-44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है। अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित "धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" की अवधारणा को मजबूत करना है।

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