21 वीं सदी में महिलाओं की भूमिका

DR. KIRTI VERMA
ASSISTANT PROFESSOR SOCIOLOGY DR. KIRTI VERMA IN FRONT OF PODAR COLLEGE NAWALGARH JHUNJHUNU RAJASTHAN
आधुनिकीकरण के इस युग ने कस्बों, नगरों ओर महानगरों की महिलाओं को बहुत प्रभावित किया है। महिलाएँ परम्परागत सामाजिक कुरितियों से बाहर निकल रही है, आधुनिकीकरण की चेतना ने महिलाओं को काफी हद तक प्रभावित किया है। अच्छे जीवन की महत्वाकांक्षा एक शिक्षित और सामान्य महिला में भी उत्पन्न हुई है। कडे़ संघर्ष के पश्चात एक शिक्षित और स्वावलम्बी महिला अपने और अपने परिवार के विकास के लिए अन्धविश्वासी कुरीतियों को तोड़ने में जरा भी पीछे नहीं है। महिलाएँ, मानवीय भावना और मानसिक क्षमता के आधार पर पुरुष के बराबर है लेकिन फिर भी उसे अपनी आबरू और मानसिक तार्किक क्षमता के आधार पर संघर्ष करना पड़ता है। परन्तु आज की महिला/नारी अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सजग है। महिला की इसी स्वाभाविक चेतना ने उसकी पारम्परिक छवि को खण्डित कर दिया है। अतः आज में गर्व से कह सकती हुँ कि इस पुरुष प्रधान रूढ़िवादी समाज में महिलाएँ निश्चित रूप से आगामी सुनहरे भारत की नींव को हरसंभव मजबूत करने का प्रयास कर रही है जो सच में तारीफ योग्य है हाँ लेकिन कुछ जगह अभी भी महिलाएँ घर की चारदीवारी में कैद होकर रूढ़िवादी परम्पराओं को सहन कर रही है आधुनिकीकरण के दौर में महिला सशक्तिकरण तेजी से आगे बढ़ा है। भारत का बुद्धिजीवी वर्ग सदैव महिला सशक्तिकरण का पक्षघर रहा है, महिलाओं को संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से मजबूती प्रदान की गई है, आज महिला पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है वह अपनी सार्थकता तथा उपयोगिता को अपनी कार्यक्षमता तथा कार्यशैली से निरंतर प्रदर्शित कर रही है। किसी भी राष्ट्र के चहुँमुखी विकास के लिये उसकी समृद्धि खुशहाली के लिये समाज के सभी नागरिकों का योगदान अपेक्षित होता है। केवल पुरुषवादी सोच या पितृसत्तात्मक विचारधारा से कोई भी राष्ट्र उन्नति के पथ पर पर तेजी से अग्रसर नहीं हो सकता। किसी भी राष्ट्र के समस्त नागरिक चाहे व किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा, रंग, लिंग आदि से संबंध रखते हो, के संगठित योगदान से ही राष्ट्र को समृद्ध और खुशहाल बनाया जा सकता है।

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