सत्ता की भाषा और जीवन की कीमत – भाषीय वंचना, संरचनात्मक हिंसा और आत्महत्या की सामाजिक पृष्ठभूमि
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Published on: Sep 30, 2025
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DOI: CIJE20251031226
Ashwini Kumar 'Sukrat'
प्रोफेसर (एड-हॉक) महर्षि वाल्मीकि कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन दिल्ली विश्वविद्यालय
भारत जैसे बहुभाषिक देश में अंग्रेज़ी माध्यम (English Medium) शिक्षा प्रणाली ने एक अदृश्य लेकिन घातक श्रेणीकरण उत्पन्न कर दिया है, जहाँ स्थानीय भाषा परिवेश में पले छात्र—विशेषतः ग्रामीण, आर्थिक एवं सामाजिक दलित, आदिवासी, निम्न मध्यमवर्गीय और यहाँ तक की गैर- संभ्रांत (एलीट) नव-धनाढ्य पृष्ठभूमि से आने वाले—उच्च शिक्षा एवं अंग्रेजी माध्यम स्कूली शिक्षा के गलियारों में न सिर्फ़ असफल होते हैं, बल्कि कई बार जीवन से भी हार मान लेते हैं। यह शोध लेख इसी 'इंग्लिश मीडियम सिस्टम' की भाषिक अन्यायपूर्ण संरचना और उसके परिणामस्वरूप होने वाली शैक्षणिक आत्महत्याओं का समाजशास्त्रीय और भाषावैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। लेख में ऐसे छह आत्महत्या केस—AIIMS, IIT, Anna University जैसे संस्थानों से—तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किए गए हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि भाषिक बहिष्कार और अंग्रेज़ी आधारित अकादमिक संस्कृति छात्रों को कैसे मानसिक संकट और पराजय की ओर धकेलती है। लेख में बौर्डीयू (Bourdieu), स्कुटनैब-कांगस (Skutnabb-Kangas), और फरेरे (Freire) के सैद्धांतिक प्रतिमानों के माध्यम से यह दिखाया गया है कि अंग्रेज़ी को योग्यता का पर्याय मानना, शैक्षणिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। लेख मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा (Mother-Tongue Based Multilingual Education) को एक वैकल्पिक समाधान के रूप में प्रस्तुत करता है, और यह तर्क देता है कि अंग्रेज़ी को एक कौशल के रूप में स्वीकार किया जाए, लेकिन उसकी संस्था-वर्चस्ववादी भूमिका को तोड़ा जाए। यह शोध, आत्महत्याओं को मात्र मानसिक समस्या नहीं, बल्कि भाषिक और संरचनात्मक हिंसा का परिणाम मानते हुए, एक मानवकेंद्रित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।