विभिन्न प्रकार के विद्यालयों के आधार पर शिक्षकों की संवेगात्मक परिपक्वता का तुलनात्मक अध्ययन

Vinod Kumari
सहायक आचार्य सम्बल कॉलेज ऑफ एज्युकेशन नवलगढ़ रोड़, शिवसिंहपुरा, सीकर Email-mahalavinod01@gmail.com, Mobile-9549176900
संवेग भावों के अत्यन्त निकट है। जब भाव तथा अनुभूति की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर में उद्दीप्त स्थिति का कारण बनती है तब उसे संवेग कहते हैं। इन्हीं संवेगों का विद्यार्थियों के जीवन में बड़ा महत्व है कि विद्यार्थी देश, धर्म तथा जाति की सुरक्षा के लिए बड़े से बड़े कार्य करने को तत्पर हो जाता है। ऐसी प्रेरणा उसे संवेगात्मक परिपक्वता से ही प्राप्त होती है। संवेग की अवस्था में मनुष्य का शरीर क्रियाशील हो जाता है। अतः मनोवैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण शारीरिक क्रियाओं को ही संवेग कह कर पुकारा है।

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