विद्यालय की भाषायी व्यवस्था और रचनात्मक शिक्षा का संकट
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Published on: Jun 30, 2025
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Co-Authors: NA
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DOI: CIJE20251021160
Ashwini Kumar 'Sukrat'
Assistant Professor (Ad-hoc), MV College of Education, University of Delhi
Co-Author 1
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Co-Author 2
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1.0 सारांश (Abstract) विद्यालयों की भाषायी व्यवस्था का विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह लेख दर्शाता है कि जब स्कूल की शिक्षण भाषा बच्चों के सामाजिक-साںस्कृतिक परिवेश से अलग (जैसे अंग्रेज़ी या परिष्कृत मानक हिन्दी) होती है, तब शिक्षण अर्थपूर्ण नहीं रह जाता और बाल-केन्द्रित रचनात्मक एवं विवेचनात्मक शिक्षाशास्त्र (Meaningful Student-Centered Creative and Critical Pedagogy) लागू करना लगभग असंभव हो जाता है। इस अध्ययन में गुणात्मक पद्धति से विभिन्न अंग्रेज़ी-माध्यम स्कूलों का अवलोकन एवं संबंधित पक्षों से साक्षात्कार किया गया। निष्कर्ष बताते हैं कि अंग्रेज़ी-माध्यम की स्कूली संस्कृति में विद्यार्थी अपने परिवेश की भाषा, लोकज्ञान और रचनात्मक गतिविधियों से कट जाते हैं। परिणामस्वरूप रटंत (रटे-रटाए) आधारित अधिगम और ट्यूशन का बोझ बढ़ता है, जो राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 (NCF-2005) द्वारा प्रस्तावित बाल-केन्द्रित रचनात्मक शिक्षण के लक्ष्यों के विरुद्ध है। लेख अंत में निष्कर्ष निकालता है कि शिक्षा को सार्थक बनाने के लिए विद्यालयी भाषा को परिवेश की भाषा के अधिक निकट लाना आवश्यक है और इसी दिशा में नीतिगत एवं व्यवहारिक परिवर्तन की अनुशंसा की गई है।