भारत में स्त्री शिक्षा का इतिहास व विकास

Dr Vinita Choudhary
एसोसियेट प्रोफेसर डी डब्लू टी कॉलेज , देहरादून, उत्तराखण्ड, Email- drvineeta173@gmail.com, Mob.-8433277476
परम्परागत रूप से भारत के इतिहास में विश्व के अन्य भू-भागों की तुलना में महिलाओं की स्थिति उच्च थी। विश्व का अन्य कोई भी धर्म स्त्री को इतनी अधिक प्रधानता नहीं देता था। वैदिक कालीन समाज में पुत्र और पुत्री दोनों को द्विजत्व प्रदान करने की परम्परा थी। उŸार वैदिक काल तकें कर्मकांडों में जटिलता आ जाने के फलस्वरूप यज्ञ कार्यों में आडम्बर होते जिसके कार.ा स्त्रियों की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, व आर्थिक स्थितियों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगने लगा। उत्तर वैदिक समाप्ति तथा बौद्धकाल के प्रारम्भ के साथ ही स्त्रियों की दशा में गिरावट आनी प्रारम्भ हो गयी जो कि मुगल काल तक बनी रहीद्य अंग्रेजों के भारत आगमन के महिलाओं के स्थिति में यद्यपि बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ परन्तु राजा राम मोहन राय और स्वामी दयानंद जैसे समाज सुधारकों की बुद्धिमति सलाह के अनुसार उन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए, महिलाओं की गरिमा और गौरव को वापस लाने के लिए अनेक प्रविधान के साथ ही उनकी शिक्षा हेतु विद्यालय व विश्वविद्यालय खोले, और निरन्तर प्रयासों से आजादी के बाद से ले कर भारत में स्त्रियों के शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति हुई है।

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