चौमु में पर्यावरण प्रबन्धन व सतत विकास की रणनीति

Dr Shankar Lal Chopra
सहायक आचार्य, भूगोल सेठ आरएल सहरिया राजकीय पीजी महाविधालय कालाडेरा, जयपुर Email-chopradrsl@gmail.com, Mob.-9636847907
पर्यावरण अवनयन के कारण चौमू तहसील में असन्तुलित हो रहे पर्यावरण में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही है जिसके निदानार्थ सतत् विकास की रणनीति इस क्षेत्र की एक महाी आवश्यकता है। बिगड़ती पारिस्थितिकी ने इस तथ्य पर चिन्तन करने को बाध्य कर दिया है। बढ़ती विकास की गति ने पर्यावरणीय सन्तुलन को नजरअंदाज किया है जिसके फलस्वरूप अनेक भौतिक एवं सामाजिक विकृतियाँ उत्पन्न हुई है। इसलिए चौमू तहसील में असन्तुलित पारिस्थितिक तन्त्र को हासित होने से बचाने के लिए सतत् विकास की रणनीति बनाना एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इस क्षेत्र में मानव की भौतिकवादी सोच के कारण संसाधनों का अविवेकपूर्ण तथा अनियोजित अतिदोहन किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप न केवल संसाधनों की कुल मात्रा अपने निन स्तर तक गिर गयी है बल्कि वर्तमान में उपलध अल्प संसाधनों की गुणव में भी ह्रास हुआ है जिसके कारण इस क्षेत्र की भावी पीढय़िों की आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर तो प्रश्न चिह्न लगा ही है साथ ही वर्तमान मानवीय जीवन पर भी इनका दुष्प्रभाव परिलक्षित होने लगा है। सतत् या संविकास की संकल्पना का मूल बिना विनाश किए विकाश (ष्ठद्ग1द्गद्यशश्चद्वद्गठ्ठह्ल ङ्खद्बह्लद्धशह्वह्ल ष्ठद्गह्यह्लह्म्ह्वष्ह्लद्बशठ्ठ) है जिसमें सन्तुलित और व्यवस्थित नियोजन पर आधारित आर्थिक, सामाजिक विकास निहित है। चौमू तहसील में उपलध संसाधनों का मानवीय हित में ऐसा उपयोग किया जाए कि पर्यावरण की गुणव निरन्तर बनी रहे तथा विकास में बाधा भी नहीं आए। अर्थात् इस क्षेत्र के जीवमण्डल की क्षमता के आधार पर संसाधनों की उस सीमा तक दोहन किया जाए कि प्रकृति की सहनशीलता से बाहर न हो योंकि सहनीय सीमा से अधिक संसाधनों का दोहन करने पर चौमू तहसील में असन्तुलन की स्थिति और अधिक विकट हो जाएगी तथा भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संसाधनों का अभाव हो जाएगा। संविकास की संकल्पना से तात्पर्य यह है कि चौमू तहसील की जनता में एक ऐसी चेतना का विकास करना है जो भौतिक विकास के लिए अपने प्राकृतिक परिवेश के मैत्रीपूर्ण उपयोग की भावना विकसित कर सके।

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