वैश्विक सतत विकास के लिए गुरुकुल प्रतिमान की प्रासंगिकता

Prof. Nand Kishor
शोधनिर्देशक, शिक्षक शिक्षा विभाग, हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़, Email Id. nandkishor@cuh.ac.in

Co-Author 1

प्रगति सचान
शोधार्थी, शिक्षक शिक्षा विभाग, हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़, Email Id. pragati.sachan98@gmail.com
शोध सारांश सतत विकास (Sustainable Development) की अवधारणा 21वीं सदी में वैश्विक नीति और शैक्षिक संरचनाओं को आकार देने में एक महत्वपूर्ण आधार बन गई है, जिसमें पर्यावरणीय संरक्षण, सामाजिक समानता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने पर ध्यान दिया जाता है। इस शोध में, हम भारतीय गुरुकुल प्रणाली के वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में संभावित योगदानों का अन्वेषण करते हैं। पारंपरिक गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, जो सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता देती है, सतत विकास के विभिन्न पहलुओं में योगदान कर सकती है। यह अध्ययन विशेष रूप से गुरुकुल प्रतिमान की विशेषताओं और इसके सतत विकास में योगदान को उजागर करने का प्रयास करता है, जिससे आधुनिक वैश्विक शैक्षिक परिदृश्य में इसे एक प्रभावी अंग के रूप में जोड़ा जा सके।

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