भारतीय सभ्य (नागरिक) समाज : एक कटु यथार्थ
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Published on: Jun 30, 2023
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Co-Authors: डॉ. गरिमा सिहाग
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DOI: CIJE202382809
Dr Avinash Sharma
सहायक आचार्य (लोक प्रशासन) राजकीय कला महाविद्यालय, सीकर (राज.) Email-avi147.as@gmail.com, Mob.-9462058197
Co-Author 1
डॉ. गरिमा सिहाग
सहायक आचार्य (लोक प्रशासन) राजकीय कला महाविद्यालय, सीकर (राज.)
सभ्य (नागरिक) समाज (सिविल सोसायटी) की अवधारणा विविध आयामी यथा-राजनीतिक, प्रषासनिक, सामाजिक, नैतिक एवं आर्थिक इत्यादि संदर्भों में प्रयुक्त की जाती है। तृतीयक क्षेत्रक के रूप में अभिहित सभ्य समाज सनातनकाल अर्थात् प्राचीन रोम एवं यूनान से चला आ रहा है। राजनीतिषास्त्री हीगल वह प्रथम अध्यक्ष थे जिन्होंने सभ्य समाज एवं राज्य के मध्य विभक्तिकरण कर मूल्यांकन किया था। प्रस्तुत षोधपत्र में सभ्य समाज का अर्थ विषेषताएॅं, अपेक्षित भूमिका तथा सभ्य समाज का यथार्थ विषेषतः भारतीय संदर्भ में आलेखित किया गया है। इसके अतिरिक्त कतिपय समाज से अपेक्षित चिंतनीय पहलुओं को भी उजागर किये जाने का विनम्र प्रयास किया गया है।