महुआ माजी के उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ में आँचलिकता

Sharmila Poonia

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प्रोफ़ेसर राजेन्द्र कुमार सेन
हिंदी विभाग पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय ईमेल: rajinderkumar.sen@gmail.com
सारांश ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ महुआ माजी का आदिवासी अस्मिता पर लिखा गया एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें झारखंड के आदिवासी समाज के जीवन, उनकी परंपराओं, संस्कृति, संघर्ष और समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है। यह उपन्यास आँचलिकता की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। इसका कथानक मुख्य रूप से झारखंड के ‘मरंग गोड़ा’ का अंचल है। लेखिका ने प्रस्तुत उपन्यास मे सिंहभुंग क्षेत्र के सारंडा (सात सौ पहाड़ियों से घिरा जंगल) जंगलों में रहने वाले ‘हो’ तथा ‘संथाल’ जनजातियों के जीवन संघर्ष को वाणी दी है। लेखिका ने ‘मरंग गोड़ा’ के आँचलिक परिवेश लोक संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक तथा भौगोलिक स्थितियों का चित्रण किया है।आँचलिकता इस उपन्यास की प्रमुख विशेषता है, जो पाठकों को आदिवासी समाज की गहराई में ले जाती है और उनकी जड़ों से परिचित कराती है। हिंदी में फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के ‘मैला आँचल’ उपन्यास से हिंदी में आंचलिक उपन्यास की परंपरा आरंभ हुई और इसके बाद आंचलिकता को केंद्र में रखकर लिखे जाने वाले उपन्यासों की बाढ़ सी आ गयीI अलग-अलग वैतरणी, पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, कगार की आग, हौलदार, चिट्ठी रसेन, धरती धन न अपना, दूध गाछ, राग दरबारी, सती मैया का चौरा, झीनी झीनी बीनी चदरिया, जंगल जहाँ शुरू होता है, डूब, अल्मा कबूतरी, हिडिम्ब, पहाड़ चोर आदि के रूप में हिंदी में आंचलिकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण उपन्यास देखे जा सकते हैंI इसी क्रम में महुआ माजी का लिखा हुआ ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसके केंद्र में झारखण्ड का आदिवासी समाज हैI प्रस्तुत शोध पत्र में इस उपन्यास के आँचलिक तत्वों का विषद विश्लेषण किया गया है।

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