हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और भविष्य का नारी साहित्य
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Published on: Mar 31, 2024
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DOI: CIJE202491919
Dr Siddhi Joshi
सह-आचार्य राजकीय कन्या महाविद्यालय झुंझुनू Email ID: dr.joshisiddhi50@gmail.com, Mob.- 9928107420
वैदिक काल से आज तक साहित्य की सभी विद्याओं में महिलाओं ने पुरूषों के समान अपनी सर्जनात्मक शक्ति का परिचय दिया है। विश्व इतिहास साक्षी है कि इस पुरूष समाज में नारी प्राचीन काल से ही सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जालों से जकड़ी हुई है। सामाजिक खौफ से गुजरते हुए स्त्री खुद से डरी, खुद में विभाजित और शक्तिहीन हो जाती है। भारतीय संदर्भ में हम देखते हैं कि समाज का बंटवारा स्त्री-पुरूषों के बीच में ही नहीं बल्कि अनेक जगह, अनेक स्तरों में बंटी हुई स्त्रियों के बीच है। नारी - चेतना की पैरवी रचनात्मक संसार में तब तक अर्थहीन होगी जब तक देश की आधी आबादी की शेष पैंतालीस प्रतिशत उत्पीड़ित स्त्रियों की त्रासदी चाहे वे सवर्ण-अवर्ण किसी भी वर्ग समुदाय से आती हो उनकी मूलभूत समस्याएं उकेरी नहीं जायेगी। भारतीय समाज व्यवस्था में स्त्रियों के लिए अधिक अवसर प्राप्त करने की गुंजाइश नहीं है।