श्रम सुधारो के संबंध में अंबेडकर के योगदान का अध्ययन
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Published on: Dec 31, 2024
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DOI: CIJE2024941044
Mahesh Kumar
शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग राजस्थान विश्वविधालय, जयपुर Email-maheshbhaskar1@gmail.com, Mob- 9414441475
अम्बेडकर न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे बल्कि भारत के श्रम कानून सुधारों के दूरदर्शी वास्तुकार भी थे। अम्बेडकर ने व्यापक श्रम सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया जो विशेषकर दलितों और अन्य हाशिये पर रहने वाले समुदायों का उत्थान करेगा। उनका विचार कार्यस्थल से आगे बढ़कर, समान अवसर, उचित वेतन और सम्मानजनक कामकाजी परिस्थितियों को सुनिश्चित करके व्यक्तियों के समग्र सशक्तिकरण का लक्ष्य रखता था। अम्बेडकर का आसन्न श्रम केवल आर्थिक भागीदारी नहीं है, बल्कि सामाजिक गरिमा प्राप्त करने और ऐतिहासिक उत्पीड़न की जंजीरों को तोड़ने का एक साधन है। श्रम सुधारों के लिए अंबेडकर का दृष्टिकोण सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के सशक्तिकरण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। श्रमिक की स्थिति और गुलामी की गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं भारत में कई महत्वपूर्ण श्रम कानूनो की पहल डॉ. अंबेडकर द्वारा गईं, वायसराय की कार्यकारी परिषद में डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रतिपादित ‘श्रम चार्टर‘ बाद में इस देश में श्रमिक कल्याण योजनाओं का आधार और मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के उत्साह और देश की नियति को आकार देने वाली बहसों के बीच, डॉ. अंबेडकर ने एक ऐसी श्रम प्रणाली की कल्पना की जो महज आर्थिक पारिश्रमिक से परे हो। इस प्रणाली ने प्रत्येक श्रमिक के लिए सम्मान, सशक्तिकरण और समग्र कल्याण की गारंटी दी। अम्बेडकर ने पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद दोनों के खिलाफ लड़ने के महत्व पर जोर दिया क्योकि अम्बेडकर ने दोनो को मजदूर वर्ग के दुश्मन माना है। 1990 के दशक में भारत में नवउदारवादी बाजार अर्थव्यवस्था के प्रवेश और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की प्रक्रिया ने भारत में श्रमिक वर्ग के मुद्दों को और अधिक जटिल बना दिया। समाज के प्रति अम्बेडकर का योगदान बहुत बड़ा है लेकिन एक श्रमिक नेता के रूप में अम्बेडकर की भूमिका को लगभग सभी लोग नजरअंदाज करते हैं। यह शोध श्रमिक कल्याण और उनकी सामाजिक सुरक्षा के प्रति उनके प्रयासों को उजागर करने का एक प्रयास है।