राजस्थान राज्य के दौसा शहर में संचालित मदरसों एवं सामान्य विद्यालयों में अध्ययनरत बालक- बालिकाओं के जीवन मूल्यों एवं समायोजन का अध्ययन
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Published on: Jun 30, 2023
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DOI: CIJE202382808
Dr Hanuman Prasad Sharma
डॉ. हनुमान सहाय शर्मा प्राचार्य , स्व. मूलचंद मीना शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय लालसोट (दौसा) राजस्थान Email- hanumanji064@gmail.com, Mob.- 8005651090
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है इसमे विभिन्न धर्मां के लोग एक साथ निवास करते है। मिल-जुल कर रहते हैं। एक दूसरे की सभ्यता-संस्कृति एवं संस्कारो का सम्मान करते हैं। किसी भी देश के सम्पूर्ण विकास हेतु जनता का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है । भारत की जनसंख्या का एक बडा हिस्सा मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों का भी है। विकसित भारत की संकल्पना तभी साकार हो सकती है जब मुसलमानों की कमजोर शैक्षिक स्थिति में सुधार हो। भारत में विकास के पर्याप्त अवसर तभी उपलब्ध होंगे जब भारतीय समाज में हिन्दू और मुस्लिम दोनों शिक्षित होंगे। हिन्दूओं के सभी बच्चे सामान्य विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते है परन्तु मुस्लिम बच्चे अधिकतर मदरसों में तालीम ले रहे है। मकतब और मदरसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक शिक्षा के परम्परागत केन्द्र रहे है। भारतीय संविधान में देश के हर 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई है और इस हेतु शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से लागू भी हो गया है। इसके परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय का शैक्षिक एवं आर्थिक पिछड़ापन दूर करने हेतु समाज एवं सरकार के स्तर पर प्रयास प्रारम्भ हुए हैं। और सरकार की दृढ़ इच्छा एवं प्रतिबद्धता के फलस्वरूप मदरसों में दीनी तालीम के साथ-साथ बुनियादी तालीम की व्यवस्था भी की गयी है।