मध्यकालीन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति

Kamala Jhajharia
सहायक आचार्य, सम्बल कॉलेज ऑफ एज्युकेशन नवलगढ़ रोड़, शिवसिंहपुरा, सीकर Email-kamalajhajharia1980@gmail.com, Mobile-9772594090
महिला आदिकाल से ही सामाजिक संरचना का महत्पूर्ण केन्द्र बिन्दु रही है। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर जब भी कोई बाह्नय अथवा आन्तरिक परिवर्तनकारी और विचारात्मक शक्ति सक्रिय हुई, व्यवस्थाकारों का ध्यान स्त्रियों के अधिकार क्षेत्र, उससे सम्बन्धित नियमाचारों की ओर आकृष्ट हुआ। परिणामस्वरूप स्त्रियों की दशा में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे तथा उनसे सम्बन्धित सामाजिक विधि-विधान भी युग की परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं। मुस्लिम परिवारों में फारसी परंपराओं को अपनाया जाता था, फलतः स्त्री का स्थान निम्न माना जाता था। तुर्की प्रभाव से सामान्य मुस्लिम युवक भी बहुविवाह करने लगे। संपन्न वर्ग के लोग अपने पत्नी के साथ ही दासियों से भी शारीरिक संबंध स्थापित करते थे, फलतः इन दासियों की संतानें आगे चलकर बराबरी का हक मांगने का प्रयास करती थी, ऐसी स्थिति में सामाजिक फूट एवं विघटन को बढ़ावा मिलता था। मध्यकाल पर दृष्टिपात करने पर ऐसे प्रकरण सामने आते है, जब दासियों से उत्पन्न संतानों ने मुश्किल पैदा की थी। कुतुबुद्दीन मुबारक अली तथा कैकुबाद के समय यह व्यवस्था के दोष स्पष्ट दिखाई देते है। मुगल काल भी इन दोषों से खाली न था। नुरजहॉ-जहांगीर प्रकरण तथा जहांगीर के प्रधान रानी द्वारा आत्महत्या के प्रमाण इन्हीं परिस्थितियों से जुड़े हुए है। इस युग में प्रचलित पर्दा प्रथा भी एक बहुत बड़ा दोष था लेकिन कुछ स्थानों पर स्त्रियों को अधिक स्वतंत्रता दी गई थी। उच्च परिवारों की स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। रजिया एवं नुरजहॉ की कार्यकुशलता अपने आप में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। स्त्रियाँ पुरूषों की तरह वेश-भूषा का प्रयोग करती थी और खेल-कुद मे भाग लेती थी। मुस्लिम समाज में विधवा विवाह तथा तलाक की स्वीकृति थी। उन्हें संपति में समान अधिकार था। इन सभी विशेषताओं के कारण साधारणतः मुसमानी समाज का पारिवारिक जीवन सरल तथा सुखमय था।

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