मध्यकालीन भक्ति चेतना – भक्तिकाल के संदर्भ में
- View Abstract
- Download PDF
- Download Certificate
-
Published on: Jun 30, 2023
-
DOI: CIJE202382788
Dr Riya
सहायक प्राध्यापक श्री आर.आर.मोरारका राजकीय महाविद्यालय, झुंझुनू, राजस्थान E-mail ID – riya.budania02@gmail.com, Mob. – 9461584540
हिन्दी साहित्य के इतिहास में आचार्य षुक्ल ने संवत् 1375 वि.से संवत् 1700 वि. तक के काल को भक्तिकाल नाम से पुकारा। भक्तिकाल हिन्दी साहित्य के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता हैए यद्यपि मध्यकाल को दो भागों में बांटागया है - पूर्व मध्यकाल व उत्तर मध्यकाल, पूर्व मध्यकाल भक्तिकाल के नाम से जाना गया व उत्तर मध्य रीतिकाल नाम से। भक्तिकाल भी षाखाओं में बंटा क्यांकि एक वर्ग ईष्वर के निर्गुण निराकार रूप को पूजने वाला था तो दूसरा सगुण साकार, परिणामस्वरूप निर्गुण काव्यधारा प्रेमाश्रयी (ज्ञानाश्रयी) व सगुण का. (राम का., कृष्ण का.) अस्तित्व में आई। निर्गुण वाले ज्ञान व प्रेम को आधार मानकर ईष्वर को पाना चाह रहे थे जबकि सगुण वालों के अराध्य, ईष्ट राम व कृष्ण थे। जिनकी पूजा-उपासना व भक्ति करके वे अपने कष्टों का निराकरण चाह रहे थे।