पंचायती राज में महिला सरपंचों की सहभागिता
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Published on: Mar 31, 2024
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DOI: CIJE202491923
Dr Neetu
असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय कला महाविद्यालय, सीकर E-mail - neeturepswall@gmail.com, Mob.-9529542900
भारतवर्ष में प्राचीन काल से गणतन्त्र विद्यमान थे।1 ब्रिटिश शासनकाल में पंचायतें तथा स्थानीय संस्थाएँ धीरे-धीरे शक्तिहीन होती चली गईं। स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में स्थानीय स्वशासन की प्रारम्भिक इकाई के रूप में पंचायतों की व्यवस्था की गई। जनसहभागिता बढ़ाने हेतु 1952 में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की योजना प्रारम्भ की गई। यह योजना अधिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकी।2 पंचायतीराज संस्थाओं को अधिक प्रभावशाली बनाने तथा विकास कार्यों में जनसहभागिता बढ़ाने के लिए 1957 में बलवन्त राय मेहता समिति द्वारा पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था का सुझाव दिया गया, जिसे अधिकांश राज्यों द्वारा लागू किया गया।3 सन् 1978 में पंचायती राज प्रणाली की समीक्षा के लिए गठित अशोक मेहता समिति द्वारा पंचायतों के द्विस्तरीय ढाँचे तथा पंचायतों में राजनीतिक दलों की सक्रिय भागीदारी पर बल दिया गया।4 1985 में योजना आयोग द्वारा नियुक्त जी.बी.के. राव समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सक्रिय करने की अनुशंसा की।5 सन् 1986 में डॉ0 लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने पंचायतों तथा उनके चुनाव के लिए संवैधानिक प्रावधानों की महत्वपूर्ण अनुशंसा की।