जल संग्रहण के परंपरागत ज्ञान के वाहक: राजस्थान मे झुंझुनू क्षेत्र के कुएं
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Published on: Dec 31, 2024
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Co-Authors: नीकी चतुर्वेदी
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DOI: CIJE2024941062_63
Rohitash Kumar
सहायक आचार्य, राजकीय महिला महाविद्यालय, झुन्झनू
Co-Author 1
नीकी चतुर्वेदी
सह आचार्य, इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
सारांश: जल जीवन का आधार है और यह प्राचीन भारतीय परंपराओं और शास्त्रों में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसे सृष्टि का एक दिव्य तत्व माना गया है, जो सभी जीवों के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। जल संरक्षण के विभिन्न तरीकों में, कुएँ पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणाली में एक प्रमुख भूमिका निभाते थे। इस दस्तावेज़ में राजस्थान जैसे क्षेत्रों में कुओं के ऐतिहासिक, स्थापत्य, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का वर्णन किया गया है। यह कुओं की संरचना, खुदाई की तकनीक, प्रकार और उनके उपयोग पर प्रकाश डालता है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पेयजल, सिंचाई और घरेलू आवश्यकताओं के लिए कुएँ एक महत्वपूर्ण स्रोत थे। कुओं की खुदाई और निर्माण की विधियों, उपयोग की गई सामग्रियों और समाज में उनकी देखभाल एवं सम्मान के साथ जुड़ी परंपराओं का भी उल्लेख किया गया है। आधुनिक समय में, पर्यावरणीय परिवर्तनों और बोरवेल जैसी तकनीकी प्रगति के कारण, कुएँ उपेक्षित हो गए हैं। अनेक कुएँ सूख गए हैं या गंदगी से भर गए हैं। फिर भी, इनका जीर्णोद्धार और संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और शहरी जलभराव की समस्याओं का समाधान करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। सरकारी योजनाओं, सामुदायिक प्रयासों और स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से कुओं को पुनर्जीवित करना न केवल इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करेगा, बल्कि वर्तमान जल आवश्यकताओं और पर्यावरणीय संतुलन में भी योगदान देगा। मुख्य शब्द: कुआं ,कोहर ,चिनाई ,गुण,चड़स, लाव, मरुआ, खेळ, जीर्णोद्धार और संरक्षण, भूजल पुनर्भरण ।