गायत्री मंत्र का विद्यालयी स्तर के बालकों की आध्यात्मिक बुद्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन।

shyam sunder sharma
पीएचडी शोधार्थी महाराज विनायक ग्लोबल विश्वविद्यालय, जयपुर

Co-Author 1

डा. विनोद कुमार उपाध्याय
प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष महाराज विनायक ग्लोबल विश्वविद्यालय, जयपुर
परिचयः- सद्बुद्धि का एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आधार गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र अकेला ही इतना सारगर्भित है कि उसे समझने में कई जन्म लग सकते है। इस महामंत्र के एक-एक अक्षर में जो गूढ़ ज्ञान भरा हुआ है। वह इतना उज्जवल है कि उसके प्रकाश में अज्ञान का अन्धकार नष्ट हो जाता है, साथ ही उसके गर्भ में वह सभी तत्व ज्ञान भरा हुआ है। जिसकी व्याख्या के लिए वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, दर्शन उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, स्मृति, नीति, संहिता एवं मूल ग्रन्थों की रचना की गई है। गायत्री मन्त्र सद्बुद्धि दायक मन्त्र है। सत् तत्व की वृद्धि करना, गायत्री मन्त्र का प्रधान कार्य है और शरीर का कायाकल्प करना एक वैज्ञानिक कार्य है। मानसिक कष्ट में गायत्री साधना से तत्काल शान्ति मिलती है। साधक को एक ऐसा आत्मबल मिलता है कि उसे आंतरिक दृढता एवं आत्म निर्भरता प्राप्त होती है। जिसके द्वारा उसे अपनी कठिनाई तुच्छ दिखाई पडने लगती है और विश्वास हो जाता है कि वर्तमान का जो बुरे से बुरा परिणाम हो सकता है वह भी मेरा कुछ नही सकता। गायत्री मंत्र साधना से अंतःकरण पर पड़े हुए कुसंस्कारों के आवरणों को हटाया जाता है। आत्मा का सहज ईश्वरीय रूप प्रकट हो जाता है। हमारा सुनिश्चित विश्वास है कि मनुष्य के लिए गायत्री मंत्र से बढकर और कोई तत्व ज्ञान एवं जीवन क्रम नहीं हो सकता है। सद्ज्ञान की उपासना का ज्ञान ही गायत्री साधना है। जो इस साधना के साधक ह,ै उन्हें आत्मिक व सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती । ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास और दीर्घकालीन अनुभव है। गायत्री मंत्र उपासना वस्तुतः ईश्वर उपासना का एक अति उŸाम सरल मार्ग है। इस मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति जीवन के चरम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति तक पहुँचते है। ब्रह्म और गायत्री में केवल शब्दों का अंतर है। वैसे वे दोनों एक ही है। ब्रह्म ही गायत्री है और उसकी उपासना ब्रह्म प्राप्ति का सर्वोŸाम मार्ग है। गायत्री साधना आत्मबल प्रदान करती है। तथा साधक को सत्संग, प्रेम और भक्ति का आनन्द सहज प्राप्त होता है। सद्ज्ञान का न होना ही दुःख है। सद्ज्ञान की उपासना ही गायत्री साधना है। वेद कहते है ज्ञान को । ज्ञान के चार भेद है - ऋक् युञः साम् और अथर्व । किसी भी जीवित प्राणधारी को लेकर उसकी सूक्ष्म और स्थूल बाहृयी और भीतरी क्रियाओ और कल्पनाओ का गम्भीर एंव वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर प्रतीत होगा कि इन्ही चार क्षेत्रों के अन्तर्गत उसकी समस्त चेतना परिभ्रमण कर रही है। ऋक को धर्म,युञः को मोक्ष, साम को काम आः अर्थव को अर्थ भी कहा जाता है। यही चार ब्रह्माजी के मुख है। यह चारो प्रकार के ज्ञान उस चैतन्य शक्ति के ही स्फुरण है। जो सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मजी ने उत्पन्न की थी और जिसे शास्त्रकारो ने गायत्री नाम से सम्बोधित किया है। इस प्रकार चारो वेदो की माता गायत्री हुई। इसी लिए वेद माता गायत्री भी कहा जाता है। आध्यात्मिक बुद्धिः- सर्वप्रथम आध्यात्मिक बुद्धि को समझने के लिए आध्यात्म शब्द को जानना एवं समझना आवश्यक है। व्याकरण की दृष्टि से देखे तो आत्मानि इस विग्रह के द्वारा अव्ययी भाव समास करके अध्यात्मक शब्द की निष्पत्ति होती है। जिसका अर्थ हुआ आत्मा में स्थिति आत्मन शब्द की सप्तमी विभक्ति के एक वचन में आत्मनि बनता है और अप्रत्यय का इति शब्द अधि शब्द के रूप सामाजिक सूत्र में परिवर्तित होता है। इसका स्पष्ट अर्थ होता है वे आत्मा में स्थिति इस तरह आध्यात्मक शब्द के मूल में ‘‘आत्मन’’ शब्द नित्य पुल्लिंग है। जिसका रूप है। ‘‘आत्मा’’ आज आत्मा के विकास की आवश्यकता है आत्मा का विकास आध्यात्मिक शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है। व्यवहारिक रूप से आध्यात्मिक बुद्धि को आत्मसात् करने वाला व्यक्ति आध्यात्मवादी है। जिसमें आत्मा और ब्रह्म के संबंध तथा स्वरूप का विचार या विवेचन हो। आध्यात्मक शब्द की श्रृंखला में ही आध्यात्मिक शब्द है। यद्यपि इसके साथ दो शब्द और प्रचलित है। आधि दैविक व अदिभौतिक संोप में इन्हें दैहिक दैविक एवं भौतिक भी कहा जाता है। इन तीनों शब्दों में आध्यात्मिक शब्द का विश्लेषण इस प्रकार है- ‘‘आत्ममन् अधिकृत्य भवम् आध्यात्मिकम् अधि उपसर्ग आत्मन शब्द इक प्रत्यय से आध्यात्मिक शब्द बनता है। इसी तरह देव शब्द जोड़कर आधि दैविक और भूत शब्द जोड़कर आधिभौतिक शब्द बनते हैं। आध्यात्मिक बुद्धि, अंतरंग एवं बहिरंग सन्तुलन को बनाये रखते हुये बुद्धिमता एवं भावनापूर्ण कार्य करने की योग्यता है । आध्यात्मिक बुद्धि वह बुद्धि है जो प्रत्येक पक्ष का अर्थ एवं भाव निकालती है। इसी कारण इसे अन्य बुद्धियों की तुलना में उच्चतर माना गया है। आध्यात्मिक बुद्धि व्यक्ति के अहंकार से परे बुद्धिमत्ता का एक उच्च आयाम है जिसकी पहुंच ज्ञान, करुणा, अखंडता, आनंद, प्रेम, रचनात्मकता और शांति के रूप में सच्चे आत्म के परिपक्व गुणों और उन्नत क्षमताओं तक होती है। आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता अर्थ और उद्देश्य की गहरी समझ को उजागर करती है, और महत्वपूर्ण जीवन कौशल और कार्य कौशल की एक विस्तृत श्रृंखला में सुधार करती हैं। आध्यात्मिक बुद्धि बुद्धि का सर्वोच्च रूप है। यह हमें अपने भीतर के रचयिता के बारे में और अधिक समझने में सक्षम बनाता है। यह हमें अशिक्षित होने से जागरूक होने, एक-आयामी होने से बहु-आयामी होने, अशक्त होने से सशक्त होने की ओर ले जाता है। इस प्रकार आध्यात्मिक बुद्धि सर्वश्रेष्ठ बताया गया हैं।

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