आदमीयत की सही मंजिल का संधान करती कहानियाँ
- View Abstract
- Download PDF
- Download Certificate
-
Published on: Mar 31, 2024
-
Co-Authors: डॉ.सिद्धि जोशी
-
DOI: CIJE202491920&21
Dr DP Singh
सह-आचार्य राजकीय कन्या महाविद्यालय झुंझुनू Email-babal.sunita77@gmail.com, M0b.- 9414853636
Co-Author 1
डॉ.सिद्धि जोशी
सह-आचार्य राजकीय कन्या महाविद्यालय झुंझुनू Email- dr.joshisiddhi50@gmail.com, Mob.- 9928107420
दलित साहित्य, हिन्दी में विचार की जमीन पर जितना प्रखर और मुखर है, रचनात्मक धरातल पर उसकी उपलब्धियाँ अभी उतनी उल्लेखनीय नहीं हैं, जैसी कि वे मराठी में हैं। बावजूद इसके, अल्प समयावधि में भी, दलित रचनाशीलता में उपर्युक्त कथन के कुछ ऐेसे सशक्त अपवाद भी सामने आये हैं जो दलित रचनाशीलता के संभावनापूर्ण भविष्य के प्रति हमें आश्वस्त करते हैं। मसलन हिन्दी में दलित आत्मकथाएँ मराठी की तुलना में परिमाण में अल्प हैं परन्तु जो हैं उनमें स्वानुभूत जीवन का यथार्थ उसी बेधकता के साथ सामने आया है, जैसा मराठी की दलित आत्मकथाओं में। इसी प्रकार कहानियों के क्षेत्र में दलित जीवन सन्दर्भों को लेकर लिखी गई ऐसी बहुत सी कहानियां है जो कहानी के रचना विधान की किसी भी कसौटी पर, अन्तर्वस्तु, संवेदना और शिल्प के हर आयाम पर कहानी की यथार्थवादी परम्परा को नई समृद्धि प्रदान करती है। इन कहानियों के जरिये दलित जीवन के कुछ ऐसे पहलू पहली बार उजागर हुए हैं जो अब तक नितांत अनदेखे और अनछुए थे। अल्प अवधि के इस दलित लेखन में जिन कुछ लोगों ने दलित रचनाशीलता और हिन्दी की वृहत्तर सर्जना में अपनी खास पहचान बनाई है, उनमें ओमप्रकाश वाल्मीकि का नाम सहज ही सबसे उपर है।