आक्रामकता को रोकने में गायत्री मंत्र का महत्व
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Published on: Sep 30, 2024
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Co-Authors: डा. विनोद कुमार उपाध्याय
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DOI: CIJE2024931011_12
shyam sunder sharma
पीएचडी शोधार्थी महाराज विनायक ग्लोबल विष्वविद्यालय, जयपुर
Co-Author 1
डा. विनोद कुमार उपाध्याय
प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष महाराज विनायक ग्लोबल विष्वविद्यालय, जयपुर
परिचयः गायत्री मन्त्र एक प्रभावशाली मन्त्र हंै, जिसकी व्याख्या वेदो और पुराणों में उल्लेखित है। महर्षि वेद व्यास कहते है की जिस प्रकार पुष्प का सार शहद, दूध का सार घी होता हंै उसी प्रकार समस्त वेदांे का सार गायत्री मन्त्र है। यह मन्त्र आत्मा का शोधन करने वाला है। इसके प्रभाव से कठिन दोष व दुर्गुणों का परिमार्जन हो जाता है। जो मनुष्य इसके प्रभाव को भली भाँति जान लेता है। उसके लिए इस संसार में कोई सुख षेष नहीं रह जाता है। अर्थात उसके सभी कार्य व मनोरथ सि़द्ध हो जाते हैं। ऋषि वाल्मिकी ने भी रामायण की मूल स्चना का आधार गायत्री मन्त्र को ही बताया है। श्रीमद्भगवतगीता में कहा है । ’’छन्दो में मैं गायत्री छन्द हूँ। इसलिए ईश्वर उपासना का एक अत्युत्तम सरल और शीघ्र सफल होने वाला मार्ग गायत्री मन्त्र ही है। अतः सभी व्यक्तियों का अपने जीवन को सरल और सुगम्य बनाने के लिए इस मन्त्र प्रयोग करना चाहिए जिससे सभी कष्टो से शारीरिक व मानसिक रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। अतः अगर कोई विद्यार्थी अपने जीवन में सफलता की प्राप्ति के नित्य प्रतिदिन गायत्री मन्त्र का जप व प्रयोग करता हैं। तो वह सभी कष्टों व मानसिक पीडा को दूर कर सकता अतः सभी विद्यार्थियों को प्रतिदिन इसका जप या उच्चारण करना चाहिए जिसके प्रभाव से उसके स्वभाव में आक्रामकता को हर कर शीतलता का प्रवेश होने लगता हैं।